रोज़ा रखने और खोलने की दुआ : रोज़ा की सही तरीका

रोज़ा रखने की दुआ: 610 ईसवी में मोहम्मद साहब को इस्लाम के प्रमुख ग्रंथ का ज्ञान हुआ तब से रोजा रखने की प्रथा चली आ रही है । रोजा को अरबी में सौम कहा जाता है, परंतु फारसी में रसूख कहा जाता है । रोजा नाम तुर्की , ईरान , पाकिस्तान भारत ,बांग्लादेश जैसे देशों में प्रचलित है ।

यह रोजा को बड़े ही धार्मिक दृष्टि से मनाया जाता है । रोजा शब्द का संस्कृत अनुवाद होता है – उपवास ! रोजा रखने का महीना 29 और 30 दिन का होता है। इसमें मुस्लिम धर्म के लोग मुख्य रूप से उपवास रखते हैं और इस महीना को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते है ।

भारत में फारसी लोगों का ज्यादा प्रभाव होने के कारण ज्यादातर मुस्लिम लोग उपवास शब्द का उपयोग करते हैं। मुसलमान में रमजान के महीने को मौसम-ए-बहार भी कहा जाता है। इस महीने में मुसलमान लोग गरीब और जरूरतमंदों की सहायता करते हैं ।

माना जाता है कि रमजान के महीने में रोजा रखने से अल्लाह हमें बरकत देता है । और इस महीने अल्लाह की इबादत करने से कई गुना दुआ मिलता है । रमजान का पहला रोजा चांद देखने के बाद करते है ।

सबसे पहले चांद सऊदी अरब में दिखाई देता है इस वर्ष सऊदी अरब में 11 मार्च को चांद दिखाई दिया था । उसके अगले दिन यानी 12 मार्च को भारत में रोजा रखा गया था। मुसलमान में धार्मिक दृष्टि से रमजान के महीने को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है ।

पैगंबर मोहम्मद जिन्होंने रोजा का शुरूआत किया उनके द्वारा कहा जाता है कि रोजा एक खास अवसर है। उन्होंने कहा जब रमजान का महीना शुरू होता है तब स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और नरक के द्वारा बंद हो जाते हैं इस प्रकार शैतानों को जंजीरों से जकड़ दिया जाता है।

रोजा रखने का तरीका


रोजा रखने का सबसे सरल तरीका है सुबह नमाज से पहले सेहरी खाई जाती है। उसके बाद फज्र की नमाज पढ़ा जाता है। और फिर सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त तक रोजा के नियमों का पालन किया जाता है । रोजा रखने के बाद किसी भी खाद्य पदार्थ का ग्रहण नहीं किया जाता है।

रोजा के दौरान बुरा सुना, बुरा देखना और बुरा बोलना मना रहता है । रोजा शाम को दुआ पढ़कर खजूर और पानी का सेवन करके तोड़ा जाता है। मेहंदी लगाया जाता है मुस्लिम धर्म गुरुओं के द्वारा माना जाता है कि रोजा भगवान को इबादत करने का एक तरीका है ,जिससे मनुष्य की बहुत सारी बीमारियां का समाधान मिलता है।

रोजा रखने की नियत


रोजा रखने में नियत का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अच्छे नियत से इबादत न करने पर दुआ कबूल नहीं होती है। कहते हैं कि अल्लाह सबसे पहले मनुष्य की नियत देखा है उसके बाद अपनी बरकत बरसता है।

इसलिए अच्छे नियत से इबादत करने से हमेशा ईश्वर की बरकत बनी रहती है। रोजा में भूख प्यास रहने से ही नियत अच्छी नहीं होती है बल्कि आप अगर अच्छे नियत से इबादत करते हो तो आपको दोगुना सवाब मिलता है।

रोजा में अच्छे नियत की बहुत अहमियत है जैसे कि किसी इंसान को मदद करके ,किसी असहाय को सहारा देकर, किसी जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करके हम अपने नियत को बेहतर रखने का प्रयत्न कर सकते हैं।

रोज़ा रखने की दुआ


रोजा के दौरान अल्लाह के प्रति कुछ दुआएं पढ़ी जाती है। इन दुआओं में अल्लाह के प्रति आत्म समर्थन की भावना होती है ,यह दुआ रोज के रखते समय पढ़ी जाती है और रोज के खुलने पर एक और दुआ पढ़ी जाती है।

रोजा रखना और खोलना के पहले यह दुआ पढ़ना बहुत ही आवश्यक माना जाता है । रोजा रखना समय इस दुआ का अध्ययन करके ही सेहरी खाया जाता है और रोजा की शुरुआत की जाती है ।

शाम को रोजा तोड़ने से पहले दुआ की जाती है उसके बाद ही रोजा खजूर और पानी खाकर तोड़ा जाता है।अगर आपको रोजा की दुआ याद नहीं होती है तो इसमें कोई घबराने की बात नहीं है हम इस लेख के माध्यम से आपको रोजा की दुआ को पढ़ने में सहायता करेंगे।

हिंदी :- व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान
English :- Wa bisawmi ghaddan nawaiytu min shahri ramadan
उर्दू :- و بسومي غادين نويت من شهري رمضان

अर्थ :- इसका मतलब है, कि मैं इस रोज़ा की नियत ध्यानपूर्वक करता हू ।

रोज़ा खोलने की नियत


रोजा खोलने के नियत इफ्तार के दौरान किया जाता है इसमें रोजा रखने वाला अल्लाह की इबादत करता है उसके बाद ही रोजा खोलता है । अगर नियत पहले नहीं किया गया तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है। और वहीं पर रोजा टूट जाता है और इस प्रकार कोई भी दुआ अल्लाह तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो पाता है।


रोज़ा खोलने का तरीका


रोजा खोलने की प्रक्रिया सूरज ढलने के बाद ही प्रारंभ किया जाता है जिससे इफ्तार भी कहते हैं। रोजा खोलने के लिए सबसे पहले अजान की आवाज को सुना जाता है। उसके बाद दुआ किया जाता है।

फिर खजूर और पानी ग्रहण करके रोज खोला जाता है। यह सब करने के बाद मगरिब की नमाज़ पढ़ा जाता है। इसमें तब तक दुआ की जाती है जब तक की अजान ना आ जाए।

रोजा खोलने की दुआ


English – O Allah! I have expressed my trust in you by fasting for you. And I break my fast with this food.

उर्दू :- اے اللہ! میں نے تیرے لیے روزہ رکھ کر تجھ پر اپنا اعتماد ظاہر کیا ہے۔ اور میں اس کھانے سے افطار کرتا ہوں۔

हिंदी :- हे अल्लाह! मै आपके लिए उपवास रखकर आप पर भरोसा जताया है । और इस भोजन से उपवास तोड़ता हू ।

रोजा रखने के लाभ :-

  • रमजान के रोज के दिन उपवास रखने से शरीर में कैलोरी की मात्रा काम हो जाती है । और साथ ही यह मोटापे के खतरा को कम करता है। यह वजन भी काम करता है ।
  • रोजा रखने से इंसानियत को तालीम भी मिलती है।
  • रोजा रखने से मनुष्य के मस्तिष्क की कार्य क्षमता मे भी सुधार आता है।
  • रोजा रखने से इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है और अंदरूनी बीमारियों को खत्म करने में सहायता करता है।
  • रोजा में उपवास रहने से हमारे शरीर के सारे गंदगी और मादक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं ।

रोज़ा क्या है?


रोजा मुसलमान का एक धार्मिक पर्व है इस अवसर पर मुसलमान लोग उपवास रहते हैं और अल्लाह का इबादत करते हैं। इसमें गरीब और जरूरतमंदों की मदद करके यह धूमधाम से मनाया जाता है ।


क्या है सेहरी ?


रमजान के महीने में रोजा के दौरान सुबह खाया जाने वाला भोजन को ही शहरी खाया जाता है ,यह हमेशा दुआ के पहले खाया जाता है।

रोज़ा रखने के दौरान पानी पी सकते हैं?


नहीं, रोज के दौरान पानी नहीं पी सकते है, क्योंकि इससे आपका रोजा टूट जाएगा । सूर्य उदय के बाद और सूर्यास्त के पहले मुसलमान में रोजा के समय पानी नहीं किया जाता है, यह उनके नियम में शामिल है ।

रोज़ा रखने के दौरान दवा ले सकते हैं?


यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो रोज के दौरान दवा खा सकता है इस पर पूर्ण रूप से छूट है कि वह डॉक्टर के सलाह से दवा ले सकता है इसके अलावा और कुछ भी नहीं खा सकता है।

क्या रोज़ा रखने के दौरान नमाज़ पढ़ी जा सकती है?


हा , रोजा रखने के दौरान नमाज पढ़ी जाती है । नमाज पढ़कर है इस दिन अल्लाह को इबादत किया जाता है । और सच्चे दिल और मजबूत इरादे के साथ अल्लाह नमाज अदा किया जाता है ।

रोज़ा कितने घंटे का होता है?


दुनिया भर में रमजान के अवसर पर मुसलमान सामान्यतः 12 घंटे का रोजा रखते हैं ,लेकिन कहीं-कहीं प्रति देखा गया है कि 17 घंटे या 14 घंटे का रोजा रखते हैं।

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